आलोचना >> आद्यबिम्ब और गोदान आद्यबिम्ब और गोदानकृष्णमुरारि मिश्र
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लेखक ने मुख्यत' कथानक, उद्देश्य एवं भाषा के बिम्बत्व क्त गभीर विवेचन किया है
डॉ. कृष्णमुरारि मिश्र हिन्दी आलोचना के एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। साहित्यिक रचनाओं की संरचनात्मक गहनताओं की व्याख्या और वस्तुनिष्ठ मूल्यांकन के लिये उन्हें विसेष ख्याति मिली है। ''आद्यबिम्ब और नयी कविता' तथा 'आद्यबिम्ब और मुक्तिबोध की कविता शीर्षक उनके पूर्वप्रकाशित ग्रंथों को हिन्दी जगत् ने अत्यधिक उत्साहपूर्वक अपनाया है। 'आद्यबिम्ब और गोदान शीर्षक उनका प्रस्तुत ग्रंथ हिन्दी आलोचना को एक नयी दिशा प्रदान करता है। कविता की आद्यबिग्यात्मक आलोचना से सम्बन्धित अनेक ग्रंथों क्त प्रकाशन हिन्दी में हो चुका है किन्तु कथा-साक्ति के क्षेत्र में यह प्रथम प्रयास है। 'आद्यबिम्ब शीर्षक पहले निबन्ध में आद्यबिम्ब सई स्वरूप-विवृत्ति के लिये हिन्दी में पहली बार युग के ऊर्जीय दूष्टिकोण का सारभूत आख्यान तथा यौगपत्य-सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय है। 'आद्यबिम्ब और उपन्यास शीर्षक द्रितीय निबन्ध उपन्यासालोचन के क्षेत्र में आद्यबिम्ब की धारणा के संप्रयोग से सम्बन्धित है। इसमें लेखक ने अनेक महत्वपूर्ण सिद्धान्तों की स्थापना की है जिनसे हिन्दी आलोचना के नये विकस की संभावनाएँ बलवती होती हैं। 'आद्यबिम्ब और गोदान' शीर्षक तीसरे निबन्ध में गोदान' का आद्यबिम्बात्मक अध्ययन है। लेखक ने मुख्यत' कथानक, उद्देश्य एवं भाषा के बिम्बत्व क्त गभीर विवेचन किया है। 'गोदान' की संरचनात्मक गहनताओं क्त यह अध्ययन उसके लगभग सभी विवादास्पद पहलुओं पर नयी रोशनी डालता है। आता है यह ग्रंथ हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में मील का पत्थर सिद्ध होगा।
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